Monday, September 29, 2008

औंधे मुंह गिरा शेयर बाजार

भारतीय शेयर बाजारों में जो हो रहा है, वह अपेक्षित था। हमने इन्हीं पन्नों पर चेतावनी दी थी कि लीमन ब्रदर्स जैसी संस्थाओं के डूबने का झटका सारी दुनिया को झेलना ही पड़ेगा। बीते दिनों भारत के बाजारों के अप्रभावित रहने के बारे में कई तर्क-कुतर्क पेश किए गए। लेकिन इस बात का जवाब किसी ने देने की कोशिश नहीं करी कि जिन कंपनियों का कारोबार ही अमेरिकी संस्थाओं पर आधारित है, वे कैसे अप्रभावित रह जाएँगी। आज भारतीय शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांक, सेंसेक्स, ने ५०० से भी अधिक अंको का गोता लगाते हुए १३००० की सीमा तोड़ दी। इसके साथ ही बाजार विगत पॉँच वर्षों में सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया। दुर्भाग्य से यह भी कोई आखरी सीमा नहीं है। अभी बाजार को और भी टूटना है। मजे की बात यह है कि मौजूदा 'संकट' दीर्घकालिक पैमानों पर निवेश करनेवालों के लिए लम्बी खरीद करने के अवसर भी ले कर आया है। टाटा समूह ने तो अभी से ही एलान कर दिया है कि वह अमेरिकी कंपनियों को खरीदने कि ताक में रहेगा।

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