Saturday, September 13, 2008

अलौकिक जीवन साधना

कल्याणमय पञ्च-सूत्र
१- यज्ञ हमारा धर्म है।
फल की कामना से छूट कर किए जानेवाले कर्म ही यज्ञ हैं। इस प्रकार से अपने स्वाभाविक कर्मों में तत्पर रहना ही हमारा धर्म है।
२- आनंद हमारी जाति है।
सुख में इतराए नहीं। दुःख में घबराए नहीं। दोनों ही दशाओं में सम रहने का नाम आनंद है। यही हमारी जाति है।
३- उत्सव हमारा परिचय है।
जीवन आदि से अंत एक उत्सव है। जो कुछ भी करें, प्रसन्न मन से करें। यह मुदिता ही हमारा परिचय है।
४- अपनत्व हमारी साधना है।
मन से परायेपन का भाव जितना ही दूर होगा, परमात्मा हमारे उतना ही करीब होगा। अखिल ब्रह्माण्ड को अपने ही अस्तित्व का विस्तार मानना अपनत्व है। इसी का अभ्यास हमारी साधना है।
५- ब्रह्मत्व हमारा लक्ष्य है।
परमेश्वर के सहज-स्वरुप को जानकर उसमें स्थित हो जाना ब्रह्मत्व है। उस परमगति को पाना हमारा लक्ष्य है।

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