रमजान के महीने की शुरुआत के साथ ही कश्मीर की घाटी में कर्फ्यू में ढील दी गयी है। जम्मू में आन्दोलन कर रहे लोगों से समझौता होते ही उधर भी शान्ति है।
मजे की बात यह है की जम्मू के लोगों से हुआ समझौता कोई नई बात को आधार बना के नहीं हुआ है। समझौते का मुद्दा तो पहले से ही तय था। बस सरकार ही उसे उलझा रही थी।
श्री अमरनाथ श्रायीं बोर्ड को जारी मौलिक आदेश में साफ़ तौर पर कहा गया था की उन्हें दी जानेवाली जमीन अस्थाई तौर पर इस्तेमाल के लिए है। यह तो उस दस्तावेज में भी कहीं नही था कि बोर्ड को कोई पक्का कब्जा दिया जा रहा है।
घाटी के मुसलमानों को बहकानेवालों ने इसे ग़लत तरीके से पेश किया। झूठी खबरें फैलाई गयीं मानो बोर्ड को कोई पक्का कब्जा दिया जा रहा हो। बोर्ड ने पक्के कब्जे कि कभी इच्छा भी नहीं जताई। मांग सिर्फ़ इतनी थी कि श्री अमरनाथ जी कि यात्रा के दौरान उस जमीन पर अस्थाई शिविर आदि लगाने दिया जाए ताकि यात्रियों को तकलीफों से बचाया जा सके।
अलगाववादियों ने तो सदा ही झूठ और फरेब का सहारा लिया है। मुसलमानों कि तुष्टिकरण कि अपनी परम्परा के कारणदिल्ली में बैठी सरकार घाटी में उठी एक आवाज पर हिल गयी और बोर्ड का करार रद्द कर दिया गया। इतनी जल्दीबाजी की गयी कि किसी को यह विचारना भी जरूरी नहीं लगा कि चल रही तीर्थ यात्रा के भक्तों का क्या बनेगा।
अब वही बात स्वीकारने के बाद जब शान्ति हुई है तो क्या सरकार जवाब देगी कि उसने बिना वजह इतने जान-माल कि क्षति क्यों करवाई? हम इस मुद्दे पर आगे भी चर्चा जारी रखेंगें.
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