Tuesday, September 16, 2008

इस आर्थिक सुनामी से कोई अछूता नहीं रहेगा

लीमन ब्रदर्स के धराशाई होने और मेर्रिल लिंच व एआईजी की मुश्किलों के सामने आने बाद निवेशकों का किसी भी बैंक पर भरोसा नहीं रहा। इतना ही नहीं, इन प्रभावशाली बैंकों का बरबाद होना दुनिया के कई दूसरे देशों के लिए भी खतरे की घंटी है। इस आर्थिक सुनामी से शायद ही कोई अछूता बचे।

शुरुआत हुई है निवेशकों के धन के डूबने और लगभग ३०००० लोगों की नौकरियों के मिटने से। लेकिन बात यहीं पूरी नहीं होगी। इन कंपनियों का डूबना अमेरिकी अर्थ तंत्र में गहरी बीमारी का सूचक है। पिछले साल नीतियों में कह्मी के कारण बैंकों के अरबों डालर के कर्ज डूबत में आ गए और सिटी बैंक मिटने के कगार पर आ गया था। साउदी के शेख, जो सिटी बैंक के अंशधारक भी हैं, ने तब एक भारी रकम लगा कर सिटी को बचाया था।

कहते हैं बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी, उसे तो कटना ही है। पिछले साल प्रकाश में आए अमेरिकी कर्ज संकट के अभी और भी कई शिकार होंगे। बड़ा मुद्दा अब यह है की क्या यह संकट अमेरिका में आर्थिक मंदी का दौर लेकर आएगा?

बीती सदी में सन १९२९ में ऐसे ही एक वित्तीय संकट के बाद अमेरिकी अर्थ व्यवस्था मंदी के गिरफ्त में फंस गई टी और आर्थिक द्रिस्ती से मजबूत दिखनेवाले लाखों अमेरिकी सड़कों पे आ गए थे। इस बार हालात और भी बुरे हैं।

पिछली सदी में अमेरिकी अर्थ तंत्र दुनिया से गुंथा हुआ नहीं था। तब अमेरिका की समस्या अमेरिका की ही थी। अब मुश्किल यह है कि सारी दुनिया ही एक दूसरे से अनेकों बिन्दुओं पर गुंथी हुई है। मसलन भारत को ही लें।

भारत का विदेश व्यापर अमेरिका केंद्रित है। यदि अमेरिका में मंदी आती है तो अगला नंबर भारत का ही होगा। लाखों लोगों के रोजगार छिन जायेंगे और करोड़ों के सामने धंधे-पानी का संकट आ जाएगा। वैश्वीकरण के इस दौर में हमें सबकी ख़बर रखनी होगी और हरेक देश को अपने कायदे-कानूनों में व्यापक फेर-बदल करने पड़ेंगे।

भारत में शुरुआत नौकरियों में कमी से होगी। विगत करीब तीन वर्षों के दौरान देश में नई नौकरियों कि बाढ़ सी आई हुई थी। नतीजतन प्लेसमेंट एजेंसियों कि संख्या ही बड़ी तेजी से बढ़ आई। वेतनमान भी खूब बढ़े। अब यह सब अतीत कि बातें हैं।

सत्यम कम्प्यूटर्स ने ४५०० कर्मचरियों कि छंटनी कि घोषणा की है। चूंकि इन्फोसिस और टाटा कंसल्टेंसी जैसी कम्पनियाँ पूरी तरह से अमेरिकी कारोबार पे आश्रित हैं तो देर-सवेर इनमें भी छंटनी का दौर चलेगा ही।

प्रिय पाठकों! एक कठिन आर्थिक दौर के लिए तैयार हो जाइये।

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